आदित्य हृदय स्तोत्र पाठ | aditya hrudayam stotram lyrics, PDF hindi
इस आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ (aditya hrudayam stotram lyrics) नियमित करने से अनंत गुना लाभ मिलता है आदित्य ह्रदय स्त्रोत के पाठ से नौकरी तथा व्यापार में व्यापार में लाभ और नौकरी में पदोन्नति के अवसर बड़ते हैं धन प्राप्ति तथा आत्मविश्वास के साथ-साथ प्रसन्नता और समस्त कार्यों में सफलता के मार्ग खुलते हैं पाठ करने वाले व्यक्ति की हर मनोकामना सिद्ध होती है यदि सरल शब्दों में कहें तो इस पाठ से हर क्षेत्र में आपको चमत्कारी फल देखने को मिल सकते हैं।
आदित्य हृदय स्त्रोत- हे स्त्रोत भगवान सूर्य देव की प्रार्थना है जिसे राम और रावण के साथ युद्ध से पहले सुनाया गया था इस स्त्रोत कुमार श्री ऋषि अगस्त्य द्वारा सुनाया गया था या पूजन तपस्या जाता है जब आपकी राशि (जन्म कुंडली) में सूर्य ग्रहण लगा है। इसके चलते आपको बढ़िया परिणाम के लिए इसका नियमित रूप से कर्मकांड यानी पाठ के साथ हवन व्रत आदि करने होंगे।इसका नियमित पाठ मन की शांति समृद्धि तथा आत्मविश्वास प्रदान करता है।
इस स्त्रोत के पाठ से जीवन में आने वाली समस्त समस्याएं दूर होती है तथा स्त्रोत पूजा विधि से कई अनगिनत लाभ भी होते हैं जिसके लिए इसके पूजा पाठ हवन जब व्रत रखे जाते हैं।
aditya hrudayam stotram in hindi, PDF
ततो युद्ध-परिश्रान्तं समरे-चिन्तया स्थितम् ।
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुप-स्थितम् ॥1॥
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टु-मभ्यागतो रणम् ।
उपगम्या-ब्रवीद् रामम-गस्त्यो भगवांस्तदा ॥2॥
राम-राम महाबाहो श्रृणु-गुह्मं सनातनम् ।
येन सर्वानरीन् वत्स-समरे विजयिष्यसे ॥3॥
आदित्य-हृदयं पुण्यं सर्वशत्रु-विनाशनम् ।
जयावहं जपं नित्य-मक्षयं परमं शिवम् ॥4॥
सर्वमंगल-मागल्यं सर्वपाप-प्रणाशनम् ।
चिन्ताशोक प्रशमन-मायुर्वर्धन मुत्तमम् ॥5॥
रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुर-नमस्कृतम् ।
पुजयस्व विवस्वन्तं भास्करं-भुवनेश्वरम् ॥6॥
सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी-रश्मिभावन: ।
एष देवासुर गणांल्लोकान् पाति गभस्तिभि: ॥7॥
एष ब्रह्माच-विष्णुश्च-शिव: स्कन्द: प्रजापति:।
महेन्द्रो-धनद: कालो-यम: सोमो-ह्यापां पतिः ॥8॥
पितरो वसव: साध्या अश्विनौ-मरुतो मनु: ।
वायुर्वहिन: प्रजा-प्राण ऋतुकर्ता-प्रभाकर: ॥9॥
आदित्य: सविता सूर्य: खग: पूषा-गभस्तिमान् ।
सुवर्ण-सदृशो भानु-र्हिरण्यरेता दिवाकर: ॥10॥
हरिदश्व: सहस्त्रार्चि: सप्तसप्ति र्मरीचिमान् ।
तिमिरोन्मथन: शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्ड-कोंऽशुमान् ॥11॥
हिरण्य-गर्भ: शिशिरस्त-पनोऽहस्करो रवि: ।
अग्नि-गर्भोऽदिते: पुत्रः शंखः शिशि-रनाशन: ॥12॥
व्योमना-थस्तमोभेदी ऋग्यजु: सामपारग: ।
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवी-थीप्लवंगमः ॥13॥
आतपी-मण्डली मृत्यु: पिगंल: सर्वतापन:।
कविर्विश्वो-महातेजा: रक्त: सर्वभवोद् भव: ॥14॥
नक्षत्रग्रह-ताराणामधिपो-विश्वभावन: ।
तेजसामपि तेजस्वी-द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते ॥15॥
नम: पूर्वाय गिरये-पश्चिमायाद्रये नम: ।
ज्योति-र्गणानां पतये-दिनाधिपतये नम: ॥16॥
जयाय जयभद्राय-हर्यश्वाय नमो नम: ।
नमो नम: सहस्त्रांशो-आदित्याय नमो नम: ॥17॥
नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नम: ।
नम: पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥18॥
ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सुरायादित्यवर्चसे ।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नम: ॥19॥
तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने ।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नम: ॥20॥
पाठ:-आदित्य हृदय स्तोत्र
तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे ।
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥21॥
नाशयत्येष वै भूतं तमेष सृजति प्रभु: ।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभि: ॥22॥
एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठित: ।
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥23॥
देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतुनां फलमेव च ।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमं प्रभु: ॥24॥
एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।
कीर्तयन् पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव ॥25॥
पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगप्ततिम् ।
एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ॥26॥
अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि ।
एवमुक्ता ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् ॥27॥
एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत् तदा
धारयामास सुप्रीतो राघव प्रयतात्मवान् ॥28॥
आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् ।
त्रिराचम्य शूचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ॥29॥
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागतम् ।
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् ॥30॥
अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमना: परमं प्रहृष्यमाण: ।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥31॥
।।सम्पूर्ण ।।