पशुपति व्रत की उद्यापन विधि तथा आरती
क्या आप भी पशुपति व्रत की उद्यापन विधि तथा पशुपति व्रत की आरती के विषय में जानना चाहते हैं।
तो आप बिल्कुल सही जगह पर आए हैं यहां हम आपको इसके बारे में संपूर्ण जानकारी देंगे।
तथा इसे पशुपतिनाथ क्यों कहा जाता है यह भी बताएंगे
व्रत का उद्यापन कैसे करें (pashupati vrat ki udhyapan vidhi)
सर्वप्रथम आप उद्यापन विधि के विषय में मंदिर के पुरोहित या फिर पुजारी से मार्गदर्शन लेवे या जानकारी प्राप्त करें
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पशुपतिनाथ व्रत कैसे करें, क्या करना है, क्या नही
भगवान भोलेनाथ को समर्पित व्रत में आपको निम्न सामग्रियां शंकर भगवान को पांचवें सोमवार की शाम को पूजा मे समर्पित
करनी है।
pashupati vrat udhyapan samgri –
108 चावल के दाने, 108 मूंग के दाने, 108 बिल्वपत्र, 108 मखाने आदि इनमें से कोई भी एक सामग्री लेकर भगवान शंकर जी के चरणों में समर्पित कर दें।
इसी के साथ साथ एक श्रीफल (नारियल) पर मौली लपेट कर उस पर ₹11 (दक्षिणा) रखकर भगवान भोलेनाथ से अपनी मनोकामना मांगते हुए शिवलिंग को समर्पित कर देवें
अधिकतर ऐसा कहा जाता है कि इस व्रत को करने से भगवान पशुपतिनाथ अत्यधिक प्रसन्न होते हैं आपके पास रथ पूरे होने से पूर्व ही आपकी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है यदि कोई भक्त सच्चे मन से सही तरीके से इस व्रत को करता है तो जल्दी ही इस व्रत का फल उसे मिल जाता है।
पशुपति व्रत की आरती (pashupati vrat ki aarti)
संपूर्ण आरती इस व्रत की
इस पशुपति व्रत की कथा (pashupati vrat Katha in hindi)
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार जब भगवान शंकर सिंह का रे का रूप धारण करके गहरी निद्रा में बैठे थे तब समस्त देवताओं ने उन्हें खोजा तथा वापस वाराणसी लाने का प्रयास किया लेकिन भगवान शिव ने नदी के दूसरे छोर की तरफ छलांग लगा दी ऐसा कहा जाता है कि इस दौरान उनका सिंह चार टुकड़ों में टूट गया था।
इसके पश्चात भगवान पशुपति चतुर्मुख लिंग के रूप में यहां प्रकट हुए और तभी से इस चतुर्मुखी रूप में भगवान शिव की पूजा, आराधना की जाती है।